
आइए जानते हैं "सूचना का अधिकार अधिनियम" के बारे में।
प्रिय बच्चों, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 केन्द्र सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जिसकी जानकारी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। देश के सभी नागरिकों को इस कानून के महत्व के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 केंद्र सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जिसके जरिए भारतीय सेना, गृह मंत्रालय की खुफिया जानकारी और ऐसी कोई भी जानकारी, जो राष्ट्रीय एकता की अखंडता के लिए खतरा हो के अलावा देश के सरकारी और अर्धसरकारी संस्थानों की जानकारी घर बैठे प्राप्त की जा सकती है।
प्रिय बच्चों, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 केन्द्र सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जिसकी जानकारी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। देश के सभी नागरिकों को इस कानून के महत्व के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 केंद्र सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जिसके जरिए भारतीय सेना, गृह मंत्रालय की खुफिया जानकारी और ऐसी कोई भी जानकारी, जो राष्ट्रीय एकता की अखंडता के लिए खतरा हो के अलावा देश के सरकारी और अर्धसरकारी संस्थानों की जानकारी घर बैठे प्राप्त की जा सकती है।
इस अधिनियम की धारा 6 (1) के तहत एक साधारण अनुरोध के माध्यम से 10 रुपये का भारतीय पोस्टल ऑर्डर देकर 30 दिनों के भीतर किसी भी विभाग से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एक पृष्ठ की जानकारी निःशुल्क प्रदान की जाती है। लेकिन एक पेज से अधिक की जानकारी दो रुपये प्रति पेज की दर से संबंधित विभाग को देनी होगी। सूचना प्राप्त न होने की स्थिति में प्रथम अनुस्मारक अवधि 30 दिन तथा सूचना प्राप्त न होने की स्थिति में द्वितीय अनुस्मारक देना होता है।
जिसका समय भी 30 दिन ही है. यदि संबंधित विभाग तीन माह तक भी सूचना उपलब्ध नहीं कराता है तो इसकी शिकायत राज्य सूचना आयुक्त से की जाती है जिसे 30 दिन के अंदर शिकायतकर्ता और संबंधित विभाग के प्रमुख को बुलाकर इसका समाधान करना होगा। विभाग द्वारा सूचना आयुक्त के समक्ष उपस्थित न होने की स्थिति में राज्य सूचना आयुक्त द्वारा उस विभाग के प्रमुख पर 500 रूपये से 25 हजार रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है तथा इस उपेक्षा के लिए दण्ड स्वरूप उस विभाग के प्रमुख को दंडित किया जा सकता है। सर्विस रिकार्ड में आपत्ति दर्ज कराई गई है
सूचना का अधिकार अधिनियम आज के समय में एक प्रभावी कानून साबित हो रहा है। लेकिन समय की देरी के कारण यह लोगों के लिए त्रासदी बनती जा रही है। विभाग को दिया गया तीन माह का समय और राज्य सूचना आयुक्त द्वारा सूचना प्राप्त करने के लिए दिया गया एक माह कुल चार माह का समय प्राप्त सूचना के वास्तविक महत्व को खत्म कर देता है। विलंबित जानकारी कभी-कभी बेकार होती है। कई विभाग तो ऐसे हैं जो राजनीतिक संरक्षण में कई माह बीत जाने के बाद भी इसकी परवाह नहीं करते और जानकारी नहीं देते।
इस त्रासदी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सूचना न देने वाले अधिकारी के लिए जुर्माने के अलावा कोई सजा निर्धारित नहीं की गई है। जिसके कारण कई विभागाध्यक्ष इसकी परवाह नहीं करते और अपनी जिम्मेदारी भूल जाते हैं। आज के समय में यह जरूरी है कि हर आम आदमी को न्याय मिले और इसलिए जरूरी है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की खामियों को दूर किया जाए ताकि यह एक महत्वपूर्ण कानून बन सके।
