कीर्ति किसान यूनियन ने साहिबजादों की शहादत पर परिचर्चा का आयोजन किया

नवांशहर - कीर्ति किसान यूनियन गांव उरापार ने महान माता गुजरी जी और साहिबजादे के शहीदी दिवस को लासानी बलिदान के प्रतीक के रूप में मनाने की बजाय इन ऐतिहासिक शहादतों को समर्पित एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें गांव की महिलाओं, किसानों और अन्य ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

नवांशहर - कीर्ति किसान यूनियन गांव उरापार ने महान माता गुजरी जी और साहिबजादे के शहीदी दिवस को लासानी बलिदान के प्रतीक के रूप में मनाने की बजाय इन ऐतिहासिक शहादतों को समर्पित एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें गांव की महिलाओं, किसानों और अन्य ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
इस अवसर पर दर्शकों को संबोधित करते हुए एडवोकेट दलजीत सिंह, बूटा सिंह महमूदपुर, ढाडी गुरदीप सिंह और मास्टर नरिंदर सिंह ने कहा कि ऐतिहासिक सिख संघर्ष किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय के खिलाफ नहीं था, बल्कि उत्पीड़न, अन्याय और निरंकुश सत्ता की मनमानी के खिलाफ था। सत्य और न्याय के लिए संघर्ष था। जिसके पीछे जातिवाद और सभी प्रकार की असमानता को समाप्त कर समानता और समानता पर आधारित एक निर्भीक लोकलुभावन समाज बनाने की विचारधारा है। जिसका सार मानव अधिकारों और मानव गरिमा की रक्षा के लिए संघर्ष है। गुरुओं ने उस समय की सत्ताधारी ताकतों और अन्य प्रतिगामी ताकतों के खिलाफ, जिन्होंने लोगों को वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से मानसिक गुलामी में जकड़ रखा था, समय की आवश्यकता के अनुसार शहादतों और बलिदानों का इतिहास रचा। शासक वर्ग एवं धार्मिक रुढ़िवादी ताकतें शहीदों की शहादतों का महिमामंडन कर आम जनता को इस गौरवशाली इतिहास की सच्ची प्रेरणा से दूर रखते हैं। जबकि समाज के हित और समय की मांग यह है कि बलिदानों और शहादतों के इतिहास पर रचनात्मक चर्चा करके उस लंबे संघर्ष की वास्तविक भावना को आत्मसात किया जाना चाहिए और ऐतिहासिक घटनाओं के सार को इसके खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बुराई की ताकतें मौजूद हैं। वक्ताओं ने कहा कि आज लोटू निज़ाम के शासक वर्ग पूरी दुनिया और हमारे ही देश में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं। जिसका प्रमुख उदाहरण फिलिस्तीन, कश्मीर, मणिपुर और भारत के आदिवासी इलाकों में लालच और आक्रामक हितों के लिए महिलाओं के खिलाफ नरसंहार, यौन हिंसा और हत्याएं हैं। आज भारत में अल्पसंख्यक एवं अन्य पीड़ित एवं मेहनतकश लोग भाजपा सरकार के उत्पीड़न की चक्की में पिस रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि आज दुनिया में जहां भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, उसके खिलाफ आवाज उठाना और पीड़ित पक्ष के साथ खड़ा होना ही सही मायने में साहिबजादों और अन्य शहीदों की शहादत को याद करना है।
इस मौके पर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर मांग की गई कि बुद्धिजीवियों और राजनीतिक कैदियों तथा अपनी सजा पूरी कर चुके सिख कैदियों समेत उन सभी कैदियों को तुरंत रिहा किया जाए, जिन्हें बिना मुकदमा चलाए झूठे मामलों में जेल में डाल दिया गया है। एक अन्य प्रस्ताव में मांग की गई कि झूठी पुलिस मुठभेड़ों के माध्यम से न्यायेतर हत्याएं रोकी जानी चाहिए और गैंगस्टर मुठभेड़ों की जांच उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए।
कार्यक्रम में कीर्ति किसान यूनियन नेता करनैल सिंह उरापार, बलदेव सिंह उरापार, सरिंदर सिंह सरपंच, मोहन सिंह पंच, सतनाम सिंह, दर्शन सिंह, परमजीत सिंह बड़वाल (यूके) मौजूद रहे।